कल के रिश्तों में एक मिठास थी
एक दुसरे से लोग प्यार, इज़त से बात करते थे
आज बात करने केलिए समय कहाँ है
जल्दबाज़ी में शब्द कड़वा बनने लगते है
विवाह के रिश्ता भी व्यापर सा हो गए
"तुम्हारे पास कितने गाडी , बांग्ला है ?
मेरे पास बड़े जगहों पे काम आने वाले
मित्र, रिश्तेदार है "
बिज़नेस के फायदे देखते देखते
बाढ़ में गए वधु - वर का कल्याण
युवक - युवतियाँ भूल गए, इश्क़ मोहब्बत करने की कला
एक ज़माना ऐसा था जब प्रियतम
अपनी प्रियतमा केलिए सालों का इंतज़ार करता था
कभी कभी शादी ही छोड़ देते,
और बिता देते, पूरी ज़िन्दगी उसकी यादों में ...
आज ,सब तरह की रिश्ता में
चाहे बाप- बेटे , पति-पत्नी ,
नाना- पोता या मालिक - मज़दूर
पहली सोच यह आ जाता है
कि "इस से मुझको क्या मिलेगा ? "
उन दिनों को वापस ला सकता है
जीत सकते है हम फिर से संसार - प्यार, मोहब्बत से
आदमी आदमी से प्रेम करने से
एक दुसरे केलिए प्यार , सहानुभूति, जगाने से
जीवन में संतुष्ट, और खुश रहने से
दिलचस्ब काम करने से
और प्रकृति के अनुसार जीने से
राजीव मूतेढत
NB: I recited this poem during the Seniors Today Poetry meet on 26/4/2024
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