I composed and recited this poem during the online Kavyakaumudi International multilingual poet's group meet on 17th December 2023. The poem draws attention to the fact that each day brings good or bad tidings based on one's own mental state. It has nothing to do with the day itself, Keeping one's mind clean, saving ourselves from negative thoughts and taking responsibility for one's happiness would lead to each day being happy and abundant.
रोज़ आती है सुबह
सूर्य की रश्मियाँ- खिड़की से निकलते
मुस्कुराते ,खेलते खेलते , मुझे जगाती है
एक जैसा लगने पर भी
रोज़ जगाने का काम करने पर भी
हर सुबह एक सामान नहीं होती
हर सूर्योदय ले आती है , अलग अलग अनुभव
कभी ख़ुशी तो कभी ग़म
कभी आशा, तो कभी निराशा
कभी गुस्सा, कभी आनंद !
परंतु, इस में बेचारी सुबह का क्या कसूर
सब कुछ है निर्भर, अपने ही मनोदशा पर
मन साफ़ रखने से , बुरे विचारों से बचने से
ख़ुशी का ज़िम्मेदारी ख़ुद लेने से
ठीक रहती है मनोदशा
तब , ज़िन्दगी भरपूर
आनंद ही आनंदमय !
राजीव मूतेडत
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