तरह तरह की यादें
कुछ रंगीन, सुनहरे
कुछ दर्द भरी , भूलने योग्य
बचपन से बुढ़ापे तक, यादें ही यादें हैं
ऐसा क्यों, कि मीठी यादों से ज़्यादा
कड़वी यादें आती हैं , सताती हैं
इस बुढ़ापे में ?
तो बन गयी है यादें
पूरे जीवन का सहयात्री
ये रहेगी साथ में
मरते दम तक !
आगे की यात्रा में भी , अनंत यात्रा में
क्या साथ देगी, ये यादें ?
कौन जाने ...?
राजीव मूतेडत
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