वह, जो पिता होने के वास्ते
मर्द होने हे वास्ते
अपना प्रेम, बाहर दिखा न पाए
अंदर ही दबा रखे - पिताजी
पर हाँ , बचपन की यादों में
बहुत सारे प्यार दिए
साथ में, खेलें , खुशियाँ मनाये
आफिस से आते, वक्त
कुछ न कुछ ज़रूर लाते - पिताजी
युवावस्था में, ये क्या हो गया ?
हम दूर दूर चले गए
नियंत्रण को, न सह सके मै
लड़का को मर्द, न मान सके आप - पिताजी
इतने सारे सालों के बाद
जब में खुद बाप, बन गया हूँ
आज, मुझे हो रहा है एहसास
आप का प्रेम, स्नेह का - पिताजी
समय के खेल के वास्ते
उस ज़माने के पिता, होने के वास्ते
मर्द होने के वास्ते
अपना प्रेम, बाहर दिखा न पाए
अंदर ही दबा रखे, आप - पिताजी!
NB: इस कविता को मैं १३/६/ २०२१ को काव्य कौमुदी चेतना हिंदी मंच में प्रस्तुत किया था |
Hari OM
ReplyDeleteyah kitana achchha hai! It is true that parents can become distant as we grow - but then we turn a point and understand as we 'become' them! YAM xx
So happy and a little surprised to receive your feedback on this post!Had thought you wouldn't be knowing Hindi :)
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