हज़ारों मील के सफर - बेंगलुरु से सिडनी, के बाद
मैं अपने पोता से मिला, पहला बार
सफर की थकान, हवाई अड्डा प्रणाली की तकलीफ
सब भूल गए मासूम चेहरा, देखते ही
उसका कोमल माथा चूमते ही ...
इस सफर तो संपन्न हुआ
पर यात्रायें और भी होंगे
सोचे तो ,पूरा जीवन हम
एक सफर से दूसरा सफर,
चलते रहने वाले , कठपुतलियाँ है न ?
दौड़ते रहेंगे हम, झेलते रहेंगे हम
अंतिम सफर तक, जिस की मंज़िल
न तुम जानो या मैं...
राजीव मूतेडत
NB: इस कविता को मै "Poetry for seniors today" मंच पर प्रस्तुत किया था | (in April 2022)
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