Thursday, 2 December 2021

चाँद









बचपन से लुभाते हो चाँद, अपनी चाँदिनी द्वारा    

तुम्हें दिखाकर, खिलाती थी माँ , रात का खाना     

बड़े होकर भी तुम्हारा आकर्षण, बढ़ता  ही रहा

 

हाँ, मैं अपने मित्रों जैसे, प्रेमिका के साथ

आनंद ले सका, तेरी  चांदिनी में 

इच्छा शक्ति, की कमी से नहीं ,

 बस सिर्फ, हिम्मत की कमी से !  

 

मगर आस्वादन किया कई  फिल्मों मे

तेरा सौंदर्य,  सुन्दर वर्णन, कई किताबों में

पर आज, इस बाईस  ईसवी  काल  में

कहाँ दिखाई देता तुम चाँद,  शहरों मे

चारों ऒर सिर्फ, कृत्रिम ही कृत्रिम प्रकाश

 

प्रकृति से इतना दूर, चुके है  हम,  मानव

अब खोये हुए चीज़ों की सूची में - धरती, फल, फूल , बहता पानी  

के साथ, साथ , तुम चाँद, और तेरी चांदिनी भी शामिल  .... 


बचपन की यादें आती रहती है  ओ चंदा मामा

खो दिए है हम तुम्हें , इतना दूर किये है तुम्हें अपने जीवन से …  

 राजीव मूतेडत   

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