बचपन से लुभाते हो चाँद, अपनी चाँदिनी द्वारा
तुम्हें दिखाकर, खिलाती थी माँ , रात का खाना
बड़े होकर भी तुम्हारा आकर्षण, बढ़ता ही रहा
हाँ, मैं अपने मित्रों जैसे, प्रेमिका के साथ
आनंद न ले सका, तेरी चांदिनी में
इच्छा शक्ति, की कमी से नहीं ,
बस सिर्फ, हिम्मत की कमी से !
मगर आस्वादन किया कई फिल्मों मे
तेरा सौंदर्य, व सुन्दर वर्णन, कई किताबों में
पर आज, इस बाईस ईसवी काल में
कहाँ दिखाई देता तुम ओ चाँद, शहरों मे ?
चारों ऒर सिर्फ, कृत्रिम ही कृत्रिम प्रकाश !
प्रकृति से इतना दूर, आ चुके है हम, मानव
अब खोये हुए चीज़ों की सूची में - धरती, फल, फूल , बहता पानी
के साथ, साथ , तुम चाँद, और तेरी चांदिनी भी शामिल ....
बचपन की यादें आती रहती है ओ चंदा मामा
खो दिए है हम तुम्हें , इतना दूर किये है तुम्हें अपने जीवन से …
Beautiful ode to the moon!
ReplyDeleteThanks a lot Deepakji!
Deleteबहुत खूबसूरत
ReplyDeleteDhanyawad Tejinderji!
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