Sunday, 29 August 2021

जिस देश में गंगा बहती है










पचहत्तरवाँ  स्वाधीनता दिवस की शाम को 

 देश भक्ति गीत गाने का आमंत्रण

जब  मिला अपने साहित्यिक संघ से,  

तब मुझे, तुरंत आ गया एक गीत, मन में 

पर उसे  गाने केलिए,  डगमग रहा था दिल !


आज की तारीख में , इस गाना कैसे गाउँ 
अपने आप से पूछ बैठे 
आज देश वासियों के होंटों में सचाई  
और दिल में सफाई है  कहाँ ?  

कैसे कहूँ  कि , मेहमान हमारा   
जान से प्यारा, जब होता है 
विदेशी टूरिस्टों का बलात्कार, 
राजधानी दिल्ली में भी! 


कैसे मानूँ , कि हममें लालच ही नहीं 
जब "शुभ लाभ "  का सिद्धांत छोड़कर, भ्रष्टाचार अपनाकर  
आमीर बनने  केलिए दौड़ते  है देश वासी ,
 संदिग्ध मार्गों  के पीछे!     

क्या आपने आप को "इंसान को पेहचानने वाले " 
"मिल जुलके रहने वाले " इत्यादि कह सकते है, जब 
मार  - पीट, हत्या, हिंसा होती है आज 
धर्म ,जाती के नाम पर?    

आखिर, पद्रह अगस्त को मैं ने 
वही गाना गा ही लिया  , वही  गीत जिस का बोल
दर्शाता है हमारा  सदियों पुराना उसूल 
हज़ारों साल के, सच्चा और पक्का संस्कृति 

कुछ गलतियाँ , भटकावा  इधर उधर होने से, 
न मिटती इस प्राचीन, पुरातन, सच्ची   सभ्यता  
वह  संस्कृति , वह सभ्यता, जो उस  महान देश की है 
जिस देश मैं गंगा बहती है !     

NB इस कविता को मै काव्यकौमुदि  मंच पर 29/8/2021 तारिक प्रस्तुत किया था |   



                

4 comments:

  1. जी हाँ राजीव जी। सही कहा आपने। शायद आपने 'फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी' फ़िल्म का यह गीत सुना हो:

    हम लोगों को समझ सको तो समझो दिलबर जानी
    जितना भी तुम समझोगे, उतनी होगी हैरानी
    उल्टी सीधी जैसी भी है, अपनी यही कहानी
    थोड़ी हममें होशियारी है, थोड़ी है नादानी
    थोड़ी हममें सच्चाई है, थोड़ी बेईमानी
    फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी
    फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी

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    1. बिलकुल जीतेन्द्र जी !गिरावट जो हुआ है, बहुत सालों में हुआ है| मैं जिस गाने का ज़िक्र किया है वह १९६० में रिलीज़ हुई और आप का "फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी" आयी थी ४० साल बाद, २००० मे |

      मैं कभी भी यह कहना नहीं चाह रहा था कि भारतीयों के मूल्यों मे जो कमी दिख रही है वह पांच - दस सालों मे हुआ है |

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  2. जी राजीव जी। जीवन-मूल्यों में गिरावट की प्रक्रिया 'जिस देश में गंगा बहती है' के ज़माने से ही शुरु हो गई थी। स्वाधीनता आंदोलन के आदर्शों के चलते यह प्रक्रिया आरम्भ के दशकों में धीमी रही, उसके उपरांत तीव्र होती चली गई।

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  3. सही बात है जीतेन्द्र जी।

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