शारीरिक रूप से देखे तो
तुम हो गोरा ,मैं हूँ काला
या मैं हूँ मोटा. तुम हो दुबला
देश, मोहल्ला, धर्म, जाति
भाषा. वेशबूषा सब है
शरीर से सबन्धित!
पर इस शरीर के परे
मैं हूँ आत्मा
तुम हो आत्मा
सब भाई बहेनें है आत्मा..
छोटा.बड़ा
अमीर - गरीब
अच्छा- बुरा
सब बाहर की बात है
तो देह अभिमान छोड़ने से
आत्मा अभिमानी बनने से
छूट जायेंगे सब भेद भाव
भाई भाई को, कर लेंगे पहचान ..
NB: यह कविता बीके ( ब्रह्मकुमारीs) की पढाई से प्रेरित है।
तुम हो गोरा ,मैं हूँ काला
या मैं हूँ मोटा. तुम हो दुबला
देश, मोहल्ला, धर्म, जाति
भाषा. वेशबूषा सब है
शरीर से सबन्धित!
पर इस शरीर के परे
मैं हूँ आत्मा
तुम हो आत्मा
सब भाई बहेनें है आत्मा..
छोटा.बड़ा
अमीर - गरीब
अच्छा- बुरा
सब बाहर की बात है
अंदर तो, मैं सूक्ष्म बिंदु रोशनी की
तुम भी सूक्ष्म बिंदु रोशनी की
और बाप परमात्मा भी
सूक्ष्म बिंदु रोशनी की...
तो देह अभिमान छोड़ने से
आत्मा अभिमानी बनने से
छूट जायेंगे सब भेद भाव
भाई भाई को, कर लेंगे पहचान ..
NB: यह कविता बीके ( ब्रह्मकुमारीs) की पढाई से प्रेरित है।
सब तथाकथित धर्मों का सार है ये कविता!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार, राजीव:)
देहाभिमान से परे जाना ही होगा परमात्मा के दर्शन करने हैं तो...
बहुत धन्यवाद अमित! बहुत खुश हूँ की आप को पसंद आया।
Deleteआपको हिन्दी में लिखता देख कर बहुत ख़ुशी हुई.. लिखते रहिएगा:)
ReplyDeleteआप जैसे मित्रों के प्रोत्साहन से कोशिश करते रहूँगा :)
Deleteआत्म-विश्लेषण पर सुंदर कविता राजीव जी।
ReplyDeleteशुक्रिया राकेशजी!
Deleteआपने बहुत खुबसूरत आध्यात्मिक कविता लिखा है। आपकी हिंदी रचना अच्छी लगी राजीव जी।
ReplyDeleteशुक्रिया रेखाजी!
DeleteThank you Mridula!
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