बहुत हुआ है
प्रगति भारत देश में
टीवी में बार बार इसी की चर्चा हो रही हैं, आज कल
शहर के बहुत लोगों के पास
मोबाइल फ़ोन हैं
बूढ़ा हो , महिला हो ,नव जवान हो
या तेरह साल के बच्चे हो
सब के पास हैं मोबाइल
आज सुबह ,मेरा दोस्त खोया सा नज़र आया
"मैंने पुछा भई क्या हुआ "
वह अपना शोक भरी कहानी सुनाया
"कल रात दस बजे मेरे तेरह साल के लड़का मोबाइल में खेल रहा था
मैं ने उसको डाँटा - जा कुछ पढ़ो
नहीं तो सो जाओ ,कल सुबह उठना है
वह चला गया बेडरूम में - और मैं अपने बेडरूम में
रात साढ़े तीन को जब अचानक उठा
सोचा कि देखूं कि वह क्या कर रहा है
जब मैं उसका बेडरूम गए
तो देखा कि कमरा बंद है अंदर से
मैं आवाज़ दिया , मारा दरवाज़े पे
पर दरवाज़ा बंद ही रहा
6 बजे दफ्तर निकलते समय
भी दरवाज़ा बंद था
मैं ज़ोर से मारा ,ऊंची आवाज़ दिया
पर दरवाज़ा बंद ही रहा
दफ्तर पहुँचने पर 8 बजे फ़ोन पे खबर किया
दरवाज़ा तब भी बंद ही था
अब मुझे 'पैनिक'( panic) सा लग रहा है
क्या रात भर वह खेलता रहा मोबाइल पर
और अब उठ नहीं पा रहा है सुबह ?
ऐसा न हो कि मेरे डाँट के वजह
वह कुछ अनर्थ न कर बैठे ?"
दोस्त की कहानी सुनकर
मैं ने सोचा ..... कि आज
प्रगति बनाया है जीवन आसान - पर
क्या इस केलिए हमें बढ़ी कीमत चुकानी पड रही है ?
हमारे मन शान्ति नष्ट हो रही है ?
यथार्थ का बहुत अच्छा चित्रण किया है आपने! बहुत ही समसामयिक है. इसी से मिलता जुलता मेरा एक पोस्ट है : मोबाइल का न्यूनतम उपयोग करें
ReplyDeletehttp://www.behtarlife.com/2014/03/minimize-using-mobile-phones.html
Thank you Pankaj! Mein aap ka post bhi pad loonga
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